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तो इस साल क्या “चातक” भी रहेगा प्यासा?

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रिपोर्ट-राम चरित्र वर्मा


बलरामपुर।सावन का महीना आ चुका है, लेकिन आसमान में बादल आकर बगैर बरसे वापस लौट रहे है। जिले के किसान दिनरात आसमान में चारो तरफ नजर दौड़ाते है लेकिन हर तरफ उनको मायूसी ही मिलती है। अनेक जगह धान के रोपे गए पौधे सूख रहे है और किसान मायूस व चिंतित लग रहे है। अगर कुछ दिन और बरसात नही हुई तो किसानों की सारी मेहनत बेकार साबित हो सकती है। हर साल सावन के माह में हर तरफ हरियाली होती थी और चारो तरफ बरसाती जल ही जल नजर आता था। खेतो में धान के हरे पौधे झूमते दिखते थे, लेकिन इस बार यही पौधे मुरझाए और पीले है। हर तरफ खेतो और सिवानो में धूल ही धूल नजर आ रही है। सक्षम किसान हिम्मत दिखाते हुए महंगे डीजल लाकर किसी तरह धान की रोपाई में लगे है लेकिन लोगो की माने तो बगैर बरसात के इंजन के पानी से धान की बेहतर पैदावार शायद सम्भव नही और अगर कुछ सफलता भी मिली तो वह मुनाफे का नही बल्कि घाटे का सौदा होगा। कुल मिलाकर आसमान में आने जाने वाले बादलों की हरकत और नाराजगी को देखकर यही लगता है कि इस साल क्षेत्रीय “किसानों” के साथ “चातक” भी प्यासा ही रहेगा???????? अब आप में से कुछ लोग “चातक” का नाम सुनकर सोच रहे होंगे कि यह किसानों के बीच कहां से आ गया, तो आपको बता दे कि “चातक” एक पक्षी है। इसके सिर पर चोटीनुमा रचना होती है। भारतीय साहित्य में इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह वर्षा की पहली बूंदों को ही पीता है। अगर यह पक्षी बहुत प्यासा है तथा इसे एक साफ़ पानी की झील में डाल दिया जाए तब भी यह पानी नहीं पियेगा और अपनी चोंच बंद कर लेगा ताकि झील का पानी इसके मुहं में न जा सके। इसे मारवाडी भाषा में “मेकेवा” और “पपीया” भी कहा जाता हैं। कहा जाता है कि “चातक” ही एक ऐसा स्वाभिमानी पक्षी है, जो भले प्यासा हो या मरने वाला हो, तब भी वह इन्द्र से ही याचना करता है। किसी अन्य से नहीं अर्थात केवल वर्षा का जल ही ग्रहण करता हैं, किसी अन्य स्रोत का नहीं।” जनश्रुति के अनुसार “चातक” पक्षी स्वाती नक्षत्र में बरसने वाले जल को बिना पृथ्वी में गिरे ही ग्रहण करता है, अतः उसकी प्रतीक्षा में आसमान की ओर टकटकी लगाए रहता है। बरसात न होने पर वह प्यासा रह जाता है, लेकिन ताल तलैया का जल ग्रहण नहीं करता।

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