बैज्ञानिक विधि से ले गन्ने का उत्पादन व बीजोपचार और भूमि उपचार है अति आवश्यक
1 min readरिपोर्ट-सुदीप वर्मा
सिद्धौर, बाराबंकी। ग्राम तपापुर पोस्ट सिद्धौर जिला बाराबंकी के राजेश कुमार वर्मा के पुत्र शुभम कुमार वर्मा जो भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ में शोध कार्य कर रहे शुभम ने बताया कि इस समय शरद कालीन गन्ने की बुवाई शुरू हो गई है, गन्ना विश्व एवं भारत की एक मुख्य नकदी फसल है जिसका उपयोग बहुताय रूप से किया जाता है, गन्ने से चीनी, गुड़, शीरा, एथेनॉल, बिजली का उत्पादन आदि में प्रयोग किया जाता है गन्ना में मुख्य रूप से लाल सड़न रोग बहुत ज्यादा गन्ने के उत्पादन को प्रभावित करता है यह रोग मृदा एवं बीज जनित रोग है इस रोग का कवक कोलेटोट्राइकम फैल्केटम होता है
इस रोग के लक्षण पत्तियों व गन्ने के तने दोनों पर दिखाई देते हैं, पत्तियों में पर्णपटल व मध्य शिरा पर रोग के लाल भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, हरापन खत्म हो जाता है, गन्ने की बढ़वार रूक जाती है, रोगग्रस्त गन्ने को बीच से फाड़ने पर खट्टे सिरका जैसी गन्ध आती है और गन्ना अन्दर से खोखला हो जाता है तथा गांठे सड़ जाती है, यह रोग वर्षा के मौसम में तेजी से फैलता है तथा जुलाई से लेकर फसल कटने के अन्त तक देखने को मिलता है लाल सड़न रोग का कवक मुख्यतः पत्तियों द्वारा प्रवेश करता है
शुभम जी ने यह भी बताया कि किसान शरद कालीन गन्ने की बुवाई करते समय स्वस्थ्य बीज का उपयोग करें, तथा नम गर्म हवा मशीन द्वारा गन्ने को 54° सेल्सियस पर 2 घंटे 30 मिनट तक उपचारित करके बुवाई करें, तथा की बुवाई के 15-20 दिन पूर्व 200 किलोग्राम गोबर की खाद में 20 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा कल्चर को मिला कर खेत में प्रयोग करें, और गन्ने के बीज को बाविस्टीन 0.2℅ या डाइथेन एम-45 से बीज उपचारित करके बुवाई करें |किसान भाई इन सारी विधियों का सही उपयोग करके ज्यादा से ज्यादा गन्ने की उपज करें।