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समाज और राष्ट्र की सेवा बिना मानवता की सेवा के अधूरी- राधेश्याम वर्मा

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रिपोर्ट – राम चरित्र वर्मा

उतरौला, बलरामपुर।भारतीय संस्कृति और सभ्यता मानवतावादी रही है। सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया और वसुदेव कुटुंबकम की समृद्धि ध्येय वाक्य के साथ भारत की प्राचीन सभ्यता का दर्शन होता है , लेकिन वही सामाजिक आडंबर और सामाजिक दकियानूसी सोच ने जहां समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया वही लोगों की अस्मिता और उनके सम्मान पर भी ठेस पहुंचाने का कार्य भी किया है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई भी सभ्यता और कोई भी धर्म कभी भी किसी की अवहेलना नहीं करता बल्कि वह सभी जीव जंतु से लेकर प्राणियों के सद्भावना की बात करता है इसलिए आज भी हमारे यहां जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो अंत में प्राणियों में सद्भावना हो-विश्व का कल्याण हो जैसा ध्येय वाक्य के साथ जयकारा लगाया जाता है।उत्तर प्रदेश के इटावा में जो घटना घटी वह धर्म और मानवता दोनो के विरुद्ध थी। ईश्वर सभी के प्रति समान भाव से व्यवहार करता है सभी के प्रति उसकी करुणामयी सोच रहती है। हम मनुष्यो ने खुद की आधुनिक सोच पर इतना बड़ा गुरुर कर लिया है कि मानव को मानव से अलग करने के लिए जातियों का सहारा लेकर राजनीति में अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए एक नई बहस को जन्म दे दिया।अगर कोई हमसे पूछे कि धर्म का मूल तत्व क्या है तो हम सिर्फ यही कहेंगे कि हमारे व्यवहार से हमारे कार्य और सोच से किसी को कोई कष्ट ना हो किसी को पीड़ा न पहुंचे यही सबसे बड़ा धर्म है। हम किसी की पीड़ा को दूर कर सकें किसी को लाभ पहुंचा सके यह धार्मिक अनुष्ठान या यज्ञ जैसा है। हम अपना नुकसान ना करते हुए दूसरों का हित कर दें उनकी भलाई के लिए कार्य करें यह मानवता है और अपना नुकसान करके लोगों का भलाई के लिए तत्पर रहे यह संत समाज की पहचान है । हमें उन आडम्बरो में नहीं पड़ना है जिससे मानवता को हानि पहुंचती हो लोगो का नुकसान होता है या किसी को तकलीफ होती है। हमें सिर्फ इस बात का ख्याल रखना है कि अपनी वाणी, विचार और कार्य से हम सामाजिक राष्ट्रहित और मानव हित के लिए कार्य करें यही सबसे बड़ा धर्म है।

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