या हुसैन…” की सदाओं से गूंजा कर्बला भूतहा, जंजीरों से मातम, जनाबे शकीना के ज़िक्र पर भर आईं आंखें
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रिपोर्ट – राम चरित्र वर्मा
रेहरा बाजार (बलरामपुर)। मोहर्रम के पवित्र महीने में रविवार को कर्बला भूतहा गांव ग़म और अकीदत में डूब गया। पारंपरिक ताजिया जुलूस निकाला गया, जिसमें अज़ादारों ने “या हुसैन” की सदाओं के बीच जंजीरी मातम कर कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। छोटे बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक हर कोई इस मातम में शरीक रहा।काले लिबास और काली पट्टियों में मातमी अज़ादार सीने पीटते, अलम थामे, आंसुओं के साथ कर्बला की याद ताज़ा करते नज़र आए। कुछ अज़ादारों ने जंजीरों से मातम कर अपनी अकीदत पेश की, जिनकी पीठों से बहता खून उनकी मोहब्बत और दर्द की गवाही दे रहा था।इस ग़मगीन माहौल में जब मौलाना भूतहा ने मजलिस को खिताब किया, तो जुलूस एक सिसकी में बदल गया। उन्होंने अपने बयान में जनाबे शकीना (स.अ.) का ज़िक्र करते हुए कहा—”कर्बला के मैदान में सबसे बड़ी तकलीफ़ सिर्फ ताजियत नहीं थी, बल्कि वह दर्द था जो एक मासूम बेटी ने सहा। जनाबे शकीना (स.अ.) – वो चार साल की मासूम, जो अपने बाबा हुसैन की गोद ढूंढती रहीं, लेकिन ताज़िया की रात उन्हें लूटे हुए खेमों और जलती ज़मीन के सिवा कुछ नहीं मिला। आज जब मैंने एक मासूम बच्ची को अलम उठाए देखा, तो लगा जैसे जनाबे शकीना फिर ज़िंदा हो गई हों…”यह सुनते ही कई अज़ादार रो पड़े। महिलाएं और बुजुर्ग भावुक हो उठे। मजलिस में सन्नाटा और सिसकियों की आवाज़ें गूंजने लगीं।जुलूस कर्बला स्थल पर पहुंचा जहां फ़ातिहा और अंतिम दुआ की गई। इस मौके पर अमन, इंसाफ और भाईचारे की विशेष दुआ मांगी गई।
इस आयोजन को सफल बनाने में दीन मोहम्मद, ने विशेष भूमिका निभाई। इन्होंने न सिर्फ़ व्यवस्थाएं संभालीं, बल्कि अज़ादारों की सेवा में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस मौके पर प्रधान प्रतिनिधि किशुनपुर ग्रांट सुनील कुमार वर्मा, रामबली वर्मा, साइंस वर्मा, अजीजुल्लाह, सीताराम मौर्य, ननकून यादव, हकीकुल्लाह , शराफत अली समेत काफी संख्या में गण मान्य लोग मौजूद रहे।