हमारे विचार हमे व्यापक बनाते है, इसी से तय होता है हमारा अस्तित्व – राधेश्याम
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रिपोर्ट -ब्यूरो बलरामपुर
अधिकांश लोगों को इस बात का भ्रम है कि शहीद ए आजम भगत सिंह हिंसा के हिमायती थे । मगर अपने एक वक्तव्य में उन्होंने यह कहा था कि जिस तरह से कीचड़ को कीचड़ से साफ नहीं किया जा सकता है उसी तरह से नफरत को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता है। इस तरह से देखा जाए तो वह सामाजिक समरसता के प्रबल पक्षधर और शोषण और असमानता के प्रबल विरोधी थे। आज के दौर में समाज में धर्म-जाति और राजनीतिक दल से लेकर तमाम बने बनाये संगठन एक दूसरे से खुद को बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं । जिसके लिए वर्चस्व की जंग जारी है। जब हम अखबार के पन्नों को पलटते हैं तो हमें हिंसा की खबरें , नफरत की बोल और आश्चर्य तो तब होता है जब भाषा और संस्कृति के नाम पर लड़ते हुए हिंसा और नफरत फैलाने का काम करते है तो बड़ी तकलीफ होती है। कोई भी धर्म किसी को छोटा करके संकुचित करके खुद बड़ा कैसे हो सकता है यह तो अधर्म है।आजादी का सही अर्थ बाहरी आजादी नहीं बल्कि अपने मन के भीतर की व्यापकता को खोलने और आजाद होने में है। शायद अगर यह बात सभी लोग समान रूप से समझ जाए तो यह धरती स्वर्ग से भी खूबसूरत हो जाएगी, मगर अफसोस की भगवान श्री राम की इस धरती पर रावण रूपी नफरत का विशाल समूह हमेशा लोगो को अपने मोहफांस मे बांधता हुआ दिखाई देता है । हमने अध्ययन किया है कि कोई भी धर्म किसी को छोटा या बड़ा नहीं समझता है। महान कवि एंव देश के पूर्व प्रधानमंत्री हमारे आदर्श आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता है कि-
पेड़ पर खड़ा आदमी बड़ा दिखाई देता है,
जड़ में खड़ा आदमी छोटा दिखाई देता है। आदमी ना छोटा होता है ना बड़ा होता है
आदमी सिर्फ आदमी होता है ।
हमारी भारतीय संस्कृति में तो इससे भी बढ़कर पशु पक्षियों, पेड़ पौधों और जीव जंतुओं को अपना मित्र मानकर उनकी सेवा का संकल्प लेने की प्रथा रही है। किसी को सताना मारना पाप तो है ही यह अनैतिक और गैरकानूनी भी है हमारी दृष्टि हमारी सोच जितनी व्यापक होगी हम उतने ही प्रसन्न होंगे। किसी को छोटा कहकर हम खुद बड़े नही हो सकते है। किसी शायर का शेर है कि
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा ।
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा ।।
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र ।
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा ।।