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कर्नलगंज में बना मत्स्य शोध संस्थान सरकारी उपेक्षा का शिकार

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रिपोर्ट -प्रमोद कुमार चौहान

परिसर में उगी बड़ी-बड़ी झाड़ियां,जीव-जंतुओं का बना ठिकाना

दस करोड़ रूपये से बने मत्स्यिकी केंद्र में एक भी किसान नहीं हुए प्रशिक्षित

कर्नलगंज, गोण्डा। सूबे में समाजवादी पार्टी की सरकार में सवा दस करोड़ रूपये की लागत से कर्नलगंज क्षेत्र के सकरौरा ग्रामीण में बना मत्स्यिकी उद्यमिता प्रशिक्षण केन्द्र निष्प्रयोज्य साबित हो रहा है। मत्स्य के शोध व मछली पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह के प्रस्ताव पर इस केंद्र का निर्माण हुआ था। यहां बने भवनों की देखरेख व मरम्मत ना होने की दशा में वे जर्जर होते जा रहे हैं। भवनों पर जगह-जगह पेड़ व खरपतवार उग जाने से भवनों में दरार आती जा रही है,तो वहीं पूरे परिसर में बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग जाने से अब इसमें जहरीलें जीव जन्तुओं ने अपना आशियाना बना लिया है। जिससे दिन के समय में भी इसमें जाना मुश्किल कार्य हो गया है। इतना सब कुछ होते हुए भी इसके जिम्मेदार बेखबर हैं और सरकार का करोड़ों का खर्चा व शिक्षा के लक्ष्य से भटकता नजर आ रहा है। यह प्रदेश का पहला मत्स्य उद्यमिता शोध एंव प्रशिक्षण संस्थान था। वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तीन करोड़ रुपये प्रथम किस्त आवंटित किए थे। बाद में केंद्र का निर्माण बजट के अभाव में थम गया था। इसके बाद सपा सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में निर्माण के प्रयास तेज हुए और करीब सवा दस करोड़ की लागत से वर्ष 2014 में बनकर तैयार हुआ था।किसानों को मछलीपालन के गुर सिखाने का था उददेश्य,बने तालाब हो रहे ध्वस्त।इस प्रशिक्षण केन्द्र में स्थानीय किसानों को मछली पालन के बारे में प्रशिक्षण देकर मछली पालन कार्यक्रम को गति प्रदान करने के उददेश्य से केन्द्र की स्थापना की गई थी। प्रशिक्षण केन्द्र में बनाए गए लगभग आधा दर्जन तालाब ध्वस्त होते जा रहे हैं। इन तालाबों में बड़ी बड़ी झाड़ियों के उग जाने से तालाब पटते जा रहे हैं। तो वहीं इसमे लगे उपकरण भी खराब होते जा रहे हैं। यहाँ मात्र कुछ तालाब में बारिश का पानी भरा नजर आया। कुछ दिन तो यहां एक दो कार्यक्रम आयोजित भी किये गये। लेकिन अब यह केन्द्र अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
कर्नलगंज में खंडहर में तब्दील हो रहा उद्यमिता प्रशिक्षण केंद्र।
मछली पालन के लिए सकरौरा ग्रामीण में 10 करोड़ 14 लाख की लागत से प्रदेश के पहले मत्स्य उद्यमिता शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत 12 नवंबर 2014 में हुई थी। इस केंद्र में 20 प्रशिक्षणार्थियों का पहला बैच बना था। इसके उद्घाटन मौके पर तत्कालीन बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री योगेश प्रताप सिंह, विश्वविद्यालय के कुलपति, डीएम सहित अन्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारी शामिल हुए थे।इस संबंध में पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह का कहना है कि मत्स्य शोध संस्थान सरकारी उपेक्षा का शिकार है। सरयू नदी का किनारा होने के चलते इस इलाके का एक बड़ा तबका मछली पालन व व्यापार से जुड़ा हुआ था। उसी को गति देने के लिये केन्द्र की स्थापना की गई थी। लेकिन विश्वविद्यालय व सरकारी मशीनरी की उपेक्षा के चलते इस इलाके का विकास थम सा गया है।

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