आगामी पंचायती चुनाव के परिसीमन को लेकर व्यक्त की अपनी प्रतिक्रिया – राधेश्याम वर्मा
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रिपोर्ट – राम चरित्र वर्मा
उतरौला बलरामपुर।पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट से जहां एक तरफ जनप्रतिनिधियों और पंचायत चुनाव लड़ने वालों के बीच में रोमांच और खलबली मची हुई है वहीं दूसरी तरफ कई ऐसी समस्याएं हैं जिन पर हुकूमत और प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।हमने देखा है कि परिसीमन लगभग हर 5 वर्ष पर सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों का कराया जाता है 1000 से अधिक आबादी और जनसंख्या वाले गांव को अलग कर दिया जाता है और वहां पर नए ग्राम पंचायत का अस्तित्व आ जाता है और वहां पर जनता जनार्दन अपने नए जनप्रतिनिधि का चुनाव करके गांव के विकास का सपना देखती है वही जनप्रतिनिधि विकास के खाका खींचते हुए उसे नया आकार देने का प्रयास करते हैं । मगर साथियों हमें देखा है कि कई ऐसे ग्राम पंचायत है जो सिर्फ एक गांव से बना हुआ है और वहां पर तीन हजार , पांच हजार या कही कही तो सात हजार तक मतदाता ग्राम पंचायत में है लेकिन परिसीमन में ऐसे गांव को अलग नहीं किया जाता है क्योंकि उसमें सिर्फ एक ही ग्राम पंचायत रहती है इनकी जनसंख्या और मतदाताओं की जनसंख्या अधिक होने के बावजूद भी नया गांव नहीं बनाया जाता है जिसका परिणाम होता है कि समाज के वंचित तबके और समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े हुए व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है जो की सरकार की आकांक्षाओं और ग्राम पंचायत की गठन का प्रमुख उद्देश्य होता है।
अगर हम गौर करें तो देश की आजादी के वक्त कुल 17 प्रांत थे जो की अब बढ़ चुके हैं । जनसंख्या का बढ़ता हुआ भार जहां एक बड़ी समस्या है वही उनके अनुपात में संसाधनों का काम होना उस समस्या में इजाफा करता है । मगर सरकार को प्रशासन को यह ध्यान रखना चाहिए कि जिस गांव के मतदाता जितने रहे उसी के अनुपात में जनप्रतिनिधि होने चाहिए जिससे आम व्यक्ति अपने जनप्रतिनिधि तक आसानी से पहुंच सके और लोकतंत्र का सपना साकार हो सके ।
2021 में नए नगर पंचायतों के गठन से कई ऐसे गांव कट गए जिनकी जनसंख्या एक हजार से कम हो गई ऐसे गांवों को शासन के निर्देश पर दूसरे गांव में शामिल किया जायेगा जिससे सही प्रतिनिधत्व जनसंख्या के अनुपात में कायम रह सके मगर जिन गांवों की जनसंख्या अधिक है वहां के बारे में भी शासन को विचार करना चाहिए क्योंकि परिसीमन का उद्देश्य ही जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व को कायम करना है। हालांकि बड़ी आबादी वाले गांवों को विकास कार्यों में अधिक महत्व मिलता है और उन्हें छोटे गांवों की अपेक्षा अधिक धनराशि विकास कार्यों के लिए आवंटित की जाती है मगर इससे लोकतंत्र की अवधारणा और उसके निहित उद्देश्यों को पूरा करना संभव नहीं है क्योंकि धनराशि के अधिक वितरण हो जाने पर भी एक जनप्रतिनिधि तक एक बड़ी जनसंख्या अपनी बात को उन तक पहुंचाने में सफल नहीं हो पाती है। बढ़ते दबाव और लोगों से न मिल पाने और जनाकांक्षाओं को पूरा न कर पाने पर जनप्रतिनिधि भी उदासीन हो जाते है।पंचायतें लोकतंत्र की आत्मा है। गांव में भारत बसता है। गांवों में सत्तर फीसदी लोग निवास करते है, ऐसे में उनकी अपेक्षाओं में ही भारत की अपेक्षाएं निहित है। महात्मा गांधी इसीलिए गांवों के उत्थान और मजबूत बनाने के प्रबल हिमायती थे उनका कहना था कि जब तक ग्राम पंचायतें मजबूत नहीं होगी एक सशक्त लोकतंत्र की स्थापना संभव नहीं हो सकती है।